डा0 अरविन्द
दुबे
अनादि काल से
लम्बी मुलायम और घनी केश-राशि प्रसंशा व
र्इर्ष्या दोनों का
विषय रही है। यह स्त्रियों को
ही नहीं अपितु पुरूषों को
भी ललचाती रही है। कवियों और लेखकों ने
तो इस पर न जाने क्या-क्या लिखा है?
रीतिकालीन कवि इनकी तुलना कभी घटाओं से, कभी भौरों से
और कभी रात से करते रहे हैं। समकालीन कवि भी इसमें कुछ पीछे नहीं रहे हैं। हालांकि चिकित्सा विज्ञानियों ने
भी बालों के बारे में कम नहीं लिखा है पर यह
जनसाधारण के लिए सामान्यतया उपलब्ध नहीं है। सामान्य विश्वास के विपरीत यह
सच है कि बालों की
लंबार्इ, घनापन व काला रंग आदि आनुवंशिक होता है। अर्थात यह माता-पिता से संतान को मिलता है। फिर भी
इसे सजाने-संवारने, स्वस्थ
व पूर्व की स्थिति में बनाए रखने में दिन-प्रतिदिन की देखभाल का श्रेय कुछ कम नहीं है।
आपके बाल :
कुछ जानने योग्य तथ्य
महीन सा
दिखने वाला यह बाल वस्तुत: तीन परतों का
बना होता है। सबसे बाहरी परत कुछ चिकनी और पारदर्शक होती है और मूलत: बाल की सुरक्षा के लिये जिम्मेदार होती है। बीच की परत बाल के लिये अति महत्वपूर्ण होती है। इस परत में तेल सोखने की
क्षमता होती है। पर यह
बाल द्वारा स्वयं पैदा किया हुआ तेल ही
सोख सकती है, बाहर से बालों पर लगाया गया तेल नहीं। चूंकि एक बार तेल सोख लेने के
बाद इस परत में तेल को काफी समय तक बनाये रखने की क्षमता होती है अत: इसी परत के कारण बालों में कोमलता व चमक होती है। यह तैलीय पदार्थ बाल को
चमकीला व मुलायम बनाए रखता है और बाल को टूटने से
रोकता है। सबसे अंदर की
परत बाल को मजबूती प्रदान करती है। बाल के भीतरी सिरे पर एक गांठ जैसी रचना होती है जिसे ‘बल्व’ कहते हैं।
बालों की सफार्इ
आम तौर पर
एक सामान्य सिर पर करीब एक लाख बीस हजार बाल होते हैं। बालों की
सफार्इ के बारे में कुछ निराधार विश्वास पीढ़ी दर पीढ़ी यह धारणा होती है कि
प्रतिदिन बालों को
नहीं धोना चाहिए क्योंकि इससे बालों को हानि पहुंचती है। यही नहीं बहुत सी
पढ़ी लिखी स्त्रियां भी यह
विश्वास करती हैं कि
अधिक धोने से बालों का
प्राकृतिक तेल धुल जाता है, जिससे उनकी चमक जाती रहती है,
उनकी नोकें फट जाती हैं, वे अधिक टूटते हैं और जल्दी ही सफेद हो
जाते हैं। इन बातों का
कोर्इ वैज्ञानिक आधार नहीं है और
इन महिलायें के ये अनुभव मात्र संयोग ही
हो सकते हैं। यदि प्रयोग किये जाने वाले साबुन में छार या कास्टिक की
मात्रा अधिक है तो यह
कुछ हद तक बालों के
प्राकृतिक तेल को
धो सकते हैं। पर इनका असर कभी भी
तेल पैदा करने वाली ग्रंथियों तक नहीं पहुंच पाता है, क्योंकि ये खाल में काफी गहरार्इ पर स्थित होतीं हैं, जहां तक साबुन आदि नहीं पहुंच पाते हैं। यदि बालों की ये
तेल पैदा करने वाली ग्रंथियां स्वस्थ हैं तो
चाहे उन्हें कितना भी धोया जाए उन पर
कोर्इ दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है। हां यदि बाल प्राकृतिक रूप से काफी सूखे हैं तो
सस्ते साबुन के प्रयोग से
वे अधिक टूट सकते हैं पर ऐसा भी
बहुत कम होता है। अधिकतर ग्रामीण महिलायें बाल धोने के लिए सस्ते, अधिक कास्टिक वाले साबुनों का प्रयोग करती हैं। कहीं कहीं तो बाल धोने के लिये जान-बूझ कर कपड़े धोने वाले साबुनों का भी प्रयोग किया जाता है। वस्तुत: इन्ही साबुनों का
प्रयोग ही उपरोक्त निराधार विश्वास की जड़ है
क्योंकि इस प्रकार के साबुनों के प्रयोग से
ही बाल अपनी स्वाभाविक चमक छोड़कर कर कड़े होने लगते हैं और अपेक्षाकृत अधिक टूटते हैं। बालों के लिये प्रयोग किया जाने वाला साबुन अधिक कास्टिक वाला नहीं होना चाहिए। नहाने का
कोर्इ भी अच्छा साबुन बाल धोने के
लिए भी प्रयोग किया जा
सकता है। कुछ महिलाओं की
यह शिकायत हो सकती है कि
इन नहाने के अच्छे साबुनों का प्रयोग करने से उनके बाल उलझते अधिक हैं। ऐसा तब होता है जब बालों से साबुन अच्छी तरह निकल नहीं पाता है। अत: साबुन लगाने के
बाद बालों को कर्इ बार पानी में धोएं। अधिकतर अधिक महीन बालों में ही
यह समस्या देखने को मिलती है। अत: ऐसे बालों को
सूखने के बाद ही कंघी करें।
शैम्पू
अनायास ही
टेलीविजन खोलते ही
एक सिने तारिका की तस्वीर उभरती है । पहले वह अपने लम्बी केश राशि उड़ा कर उसका प्रदर्शन करती है, फिर वहीं से उठाती है एक शैम्पू की बोतल, फिर बोलती है राज की बात,उस शैम्पू का नाम.......उसके लम्बे घने चमकदार काले बालों का
राज। अक्सर हकीकत यह होती है कि प्रदर्शन करने वाली तारिका ने
शायद वह शैम्पू की बोतल पहली व आखिरी बार देखी होती है, उसके द्वारा उसके उपयोग का तो प्रश्न ही नहीं उठता।
आपके अवचेतन मस्तिष्क में वे घने काले बाल लहराते रह जाते हैं और अगले दिन आप अपनी गाढ़ी कमार्इ का एक
बड़ा हिस्सा लिए दूकान पर खड़े होते है। बाजार से लौटते समय वह बोतल आपकी उस रोज की
खरीदारी का एक अहम हिस्सा होती है। बोतल धीरे-धीरे चुक जाती है और आपके बाल? अगर आप
भाग्यशाली हैं तो
आपके बालों का कुछ नहीं बिगड़ता, वे ज्यों के
त्यों रहते हैं। आप झुझलाते हैं या फिर मुस्करा कर किसी नए उत्पादन की खोज में लग जाते हैं और एक
बार फिर ठगे जाने की
प्रतीक्षा करते हैं।
एक शैम्पू में काम की दो
चीजें होती हैं एक डिटरजेंट जो गंदगी को
घोल लेता है व दूसरा सरफेक्टेंट जो डिटरजेंट को सिर के
हर छोटे बड़े हिस्से में फैलने में मदद करता है। इसके अतिरिक्त कुछ विशेष
पदार्थ भी शैम्पू में मिलाए जाते हैं यथा- गंधक, सेलीसिलिक
एसिड, जीवाणु
नाशक पदार्थ, सेलीनियम सल्फाइड, जस्ते के यौगिक व तारकोल से निकाले गये औषधि यौगिक आदि। कुछ नया चाहने की ललक का
लाभ उठाकर कभी-कभी निर्माता इसमें कोर्इ ऐसा पदार्थ मिला देते हैं जिसका कि बालों की सफार्इ व
स्वास्थ्य से दूर-दूर तक का
भी सम्बंध नहीं होता है। ऐसे कुछ पदार्थ हैं-
नीबू, चूना, हल्दी,
अंडे, हरे फल, सुगंधियां आदि। पहले तो शैम्पू में ये पदार्थ मिला भी दिए जाएं तो ये शैम्पू की गुण्वत्ता में कोर्इ वृद्धि नहीं करते, हां आपकी जेब कुछ हल्की अवश्य करते हैं। दूसरे कभी-कभी,
किसी किसी महिला में ये
बालों को हानि भी पहुंचा सकते हैं या
सिर में एलर्जी पैदा कर
सकते हैं।
मेरी राय में तो कोर्इ ऐसी विधि नहीं है
जिसके द्वारा ये तथाकथित पोषक पदार्थ या
प्रोटीन बालों द्वारा सोखे जा सकें क्योंकि बालों की
बाहरी परत का काम बाहरी पदार्थों को अंदर जाने से रोकना ही होता है। रही बालों के लिए पोषक तत्वों की
बात, वे सिर्फ बालों की जड़ द्वारा ही गृहण किए जा सकते हैं,
जहां तक शैम्पू ये तथाकथित पोषक तत्व पहुंच ही नहीं सकते हैं। अत:
इनका किसी शैम्पू में होना निरर्थक ही
है। बालों की मजबूती, उनका पोषण व वृद्धि आपके स्वास्थ्य व
शारीरिक पोषण से संबद्ध हैं। अत:
इसके लिए यदि करना हो तो
वह पोषक तत्वों के
खाने से होगा न कि
उनको सिर पर मलकर धो
देने से। अत: नए-नए उत्पादनों की
और न भागें। यदि आप
एक शैम्पू प्रयोग कर रहे हैं तो उसे ही प्रयोग करते रहें। विज्ञापनों की
चकाचौंध से प्रभावित न हों। यदि आप मंहगे और वैज्ञानिक तरीकों से परखे शैम्पू आदि नहीं खरीद सकते तो सस्ते उत्पादन खरीद कर
अपने बालों की बरबादी न
करें। इसके लिए घर में बनी सस्ती चीजें प्रयोग की जा
सकती हैं, यथा-नीबू का रस,
सिरका या
रीठा, शिकाकार्इ
आदि पानी में डालकर प्रयोग किये जा सकते हैं। इनमें कुछ कार्बनिक अम्ल होते हैं। ये अम्ल गंदगी व छार को घोल लेते हैं और पानी के साथ धुल कर बाहर निकल जाते हैं। बालों में मुल्तानी मिटटी या दही में बेसन घोल कर
भी लगाया जा सकता है। ये दोनों वैग्यानिक रूप से भी किसी अच्छे से अच्छे से
शैम्पू से भी बेहतर साबित हुए हैं और
इससे आंखों को नुकसान या
एलर्जी का भी कोर्इ खतरा नहीं रहता है। बाजार में कुछ आयुर्वेदिक शैम्पू उपलब्ध हैं पर इनकी उपादेयता अब तक सिद्ध नहीं हो सकी है। कोर्इ भी
शैम्पू आप प्रयोग करें, इसे करीब पांच मिनट तक
बालों में रहने दें ताकि यह भली पूर्वक अपना काम कर
सके और फिर इसे भली प्रकार धो दें ताकि शैम्पू या
साबून का कोर्इ अंश बालों में न रहे। शैम्पू या साबुन बालों से पूरी तरह निकल जाने की पहचान यह
है कि पूरी तरह धुले बालों पर अगर हाथ फिराया जाये तो वे चिकने नहीं वरन थोड़े चिपकने से लगते हैं। जब तक
यह स्थिति न आ जाए बालों को
साफ पानी से धोते रहें। बाल धोने के
लिए पहले उन्हें गुनगुने पानी से धोना शुरू करें व उनकी अंतिम धुलार्इ सामान्य तापक्रम के पानी से
करें। धोने के लिए खारे व कठोर जल
का प्रयोग न करें। एक
तो इस पानी में झाग कम बनता है,
दूसरे इसमें छार की अधिक मात्रा होती है
जो बालों को उतनी ही
हानि पहुंचाती है
जितना कि एक सस्ता और
कठोर साबुन या कपड़े धोने वाले साबुन। धोने के बाद जितना शीघ्र हो सके,
बालों को
सुखाने की कोशि्श करनी चाहिए। बाल जाड़ों में तो तौलिए से
झटक कर सुखाए जा सकते हैं पर गर्मियों में तो सिर्फ धूप से ही
काम चल जाता है। यदि आप बाल सुखाने के लिए हेयर ड्रायर का प्रयोग करें तो ध्यान रखें कि इससे निकलने वाली गरमी अधिक न हो वरना बालों की स्वाभविक चमक जाती रहती है। सर्दियों में ड्रायर से बालों को पूरी तरह सुखाने का प्रयास न करें। इस
मौसम में बालों को कुछ गीला ही छोड़ दें।
तेल का प्रयोग
बालों के
पोषण और वृद्धि के लिए किसी तेल की आवश्यकता नहीं होती, यह निर्विवाद सत्य है। बाहर से लगाया गया तेल चूंकि बा्लों में प्रवेश ही नहीं कर
सकता है अत: यह बालों के
लिए बेकार ही रहता है। आपके विश्वास के विपरीत जितने
तेल की आवष्यकता बालों को
होती है उतना तेल उत्पन्न करने की क्षमता बाल से संबद्ध तेल ग्रंथियों की
होती है। वैसे भी वैज्ञानिकों को अभी तक
किसी ऐसे तेल का पता नहीं है जो
बालों की चमक, वृद्धि या मजबूती बढ़ाता हो।
स्वस्थ बाल तो
स्वस्थ शरीर का एक हिस्सा हैं। हां यदि बाल इतने बेतरतीब हो रहे हों कि उन्हें ढंग से
का संवारा जाना संभव न
हो तो तेल की कुछ बूंदें डालकर बालों को संवारे जाने योग्य बनाया जा
सकता है। पर कभी भी इस भ्रम में न रहें कि
बालों को इससे कोर्इ लाभ होगा। इसके विपरीत बालों में तेल लगने से
गंदगी उन पर आसानी से
चिपकती है और इससे भांति-भांति के इंफ़ेक्शन हो सकते हैं।
कंघी करना
बालों में दिन में कम से
कम दो बार कंघी अवष्य करनी चाहिए। इससे बालों में फंसी गंदगी निकल जाती है और तथा कथित डेंड्रफ़ नहीं होने पाती है। बालों में कंघी करने से सिर की
खाल में रक्त का प्रवाह बढ़ता है जिससे बाल स्वस्थ रहते हैं। कुछ स्त्रियां यह सोचती हैं कि अधिक कंघी करने से बाल अधिक गिरते हैं पर ऎसा नहीं है। कंघी करने में वही बाल निकलते हैं जो
वैसे भी गिरने वाले होते हैं क्योंकि इससे उनके स्थान पर
निकलने वाले नये बालों के
उगने व बढ़ने में सहायता मिलती है। बड़े बालों में पहले ब्रुश का प्रयोग करें बाद में आवश्यकता होने पर
कंघी का प्रयोग करें। भीगे बालों में कंघी करना न हानिकारक है और न
लाभदायक अपितु यह
तो अपनी- अपनी पंसद की
बात है।
जहां तक संभव हो हर व्यक्ति की अपनी अलग-अलग कंघी एवम ब्रुश होना चाहिये। किसी दूसरे की कंघी व
ब्रुश प्रयोग करने से बचें। हालांकि अपेक्षाकृत सख्त ब्रुश व कंघियां अच्छे माने जाते हैं पर यह
इतना सख्त व नुकीला न
हो कि सिर की खाल में खरोंचें बना दे, जिनमें
बाद में इंफ़ेक्शन लगने की सम्भावना बनी रहती है। कुछ लोग लोहे की या स्टील की कंघियों को
प्रयोग करते हैं जो कि
हमेशा खतरनाक ही होतीं हैं।
घुंघराले
बाल
यह अपनी-अपनी पंसद है। किसी को सीधे बाल अच्छे लगते हैं तो किसी को घुंघराले। बालों का सीधा या
घुंघराला होना इस
बात पर निर्भर करता है
कि बाल मोटार्इ में गोल हैं या चपटे। जो बाल मोटार्इ में गोल होते हैं वे सीधे होते हैं और
जो बाल मोटार्इ में चपटे होते हैं वे
घुंघराले होते हैं। हालांकि बालों का
सीधापन या घुंघराला होना किसी व्यक्ति को उसके माता-पिता से विरासत में मिलता है
पर कुछ पदार्थ यथा-सिरका, नीबू का रस,
अंडे की सफेदी आदि बालों को घुंघराले बनाने में सहायक माने जाते हैं पर इनका सचमुच कोर्इ उपयोग नहीं है क्योंकि पहले तो हर प्रकार के बालों को
इन पदार्थों से घुंघराला बनाया ही नहीं जा
सकता और यदि कुछ हो
भी गया तो यह परिवर्तन स्थार्इ नहीं होता है। बाजार में कुछ ऐसे उपकरण उपलब्ध हैं जिनके बारे में यह दावा किया जाता है
ये बालों को घुंघराला बनाते हैं।
अब तक
इन उपकरणों पर वांछित खोज कार्य उपलब्ध नहीं है। अत: इनकी उपादेयता व
ये कितने सुरक्षित हैं, इस बारे में अधिक जानकारी नहीं है। वस्तुस्थिति तो यह है
कि इनके परिणाम व हानि-लाभ उसके प्रयोग करने वाले की
दक्षता व प्रयोग किए जाने वाले पदार्थों की
गुणवत्ता पर निर्भर करते हैं। पर यदि इस
प्रक्रिया में बाल को अपेक्षाकृत अधिक गर्म किया जाए तो उनके चमक खोने व ज्यादा टूटने के खतरे बने रहते हैं। अत: यदि संभव हो
तो उसी प्रकार के बालों पर संतोष करें, जिस प्रकार के प्रकृति ने आपको दिए हैं।
बालों की छंटार्इ व उनकी वृद्धि
आम धारणा यह
है कि बालों को छांटते रहने से वे
तेजी से बढ़ते हैं। पर
ऐसा है नहीं, क्योंकि
हम काटते तो बाल का
निर्जीव भाग हैं और बाल बढ़ता उस भाग से है जो
कि खाल के अंदर दबा रहता है। अत: इस धारणा में कोर्इ सत्यता नहीं है। हां यदि बालों की
नोकें बराबर काटी जाती रहें तो नोकों का
फटना रोका जा सकता है
और इन नोकों का टूटना रोका जा सकता है। पर इससे बालों की लंबार्इ में कोर्इ वृद्धि नहीं होती है। लोगों का
यह विचार, सिर मुंड़ाने से
घने बाल उगते हैं, भी निराधार है।
बालों की रंगार्इ
बालों को रंगने वाले पदार्थ सबसे पुराने व सबसे खतरनाक सौंदर्य प्रसाधन माने जाते हैं। बालों को रंगने की आवश्यकता निम्न स्थितियों में आती है। एक तो
तब जब बाल समय से
पहले सफेद हो रहे हों और दूसरे उम्र को छिपाने के
लिए। कभी-कभी किसी-किसी को अपने बालों का
प्राकृतिक रंग अच्छा नहीं लगता। ऐसे में बाल या
तो रंगे जाते हैं या
ब्लीच किए जाते हैं। हालांकि बालों का सफेद होना या काला होना कुछ हद
तक आनुवंशिकता पर
निर्भर करता हैं। ऐसे भी
कुछ प्रमाण हैं कि उपयुक्त भोजन व प्रोटीन खाने से बालों का असमय सफेद होना कुछ हद
तक रोका जा सकता है। पर सफेद हो
गये बालों को फिर से
काला करने की कोर्इ औषधि उपलब्ध नहीं है, हां इन्हें रंगा अवश्य जा सकता है। रंगने वाले इन पदार्थो में एनिलीन रंजक (डाई) व कुछ धात्विक रंगों का
प्रयोग किया जाता है जो
कि खाल से शोषित होकर शरीर में जहर फैला सकते हैं या एलर्जी द्वारा सिर की चमड़ी आंखों व चेहरे को नुकसान पहुंचा सकते हैं। अक्सर देखा गया है
कि रंगने के पश्चात सिर के बालों का
रंग आंखों व खाल के
बालों से भिन्न हो जाता है जो कभी-कभी बड़ी हास्यास्पद स्थितियां उत्पन्न कर देता है। जैसे बाल बढ़ते हैं पुराना रंग फिर बालों की जड़ों पर
झलकने लगता है, जिसके लिए बार बार डार्इ या
ब्लीच प्रयोग करने की आवश्यकता पड़ती है और
हर बार एलर्जी व शरीर में जहर फैलने का खतरा बढ़ता जाता है। ब्लीचिंग के लिये प्रयुक्त प्रसाधनों में हाइड्रोजन परआक्साइड, सोडियम
परबोरेट व अमोनिया का प्रयोग किया जाता है
जो कि बार-बार प्रयोग करने से बालों को
हानि ही पहुंचाते हैं। डार्इ व ब्लीच दोनों के बार-बार प्रयोग से
बाल सूखे हो जाते हैं और ज्यादा टूटते हैं।
भूसी, रुसी या डेंड्रफ
आज विज्ञापन दाताओं ने बालों में डेंड्रफ को जितना बडा़ हौआ बना कर प्रस्तुत किया है उतना किसी और को नहीं। आम आदमी को
लगता है यह शायद उसके सफार्इ न रखने का परिणाम है
या फिर वह किसी तरह की बीमारी से ग्रसित है। वास्तव में डेंड्रफ सिर की सामान्य पुनर्जीवीकरण प्रक्रिया का ही
एक भाग है। सिर की
चमड़ी में शरीर की
अन्य जगह की खाल की
तरह हमेशा नीचे से नर्इ कोशिकाएं बनतीं हैं। बदले में उसके ऊपर की कोशिकाएं,
जो अब तक निर्जीव हो चुकी होती हैं, सतह से अलग हो होकर झड़ती रहती हैं। ये
कोशिकाएं छोटे पतले छिलकों कें रूप में खाल से
अलग होती रहती है जो
अक्सर नंगी आंखो से दिखार्इ नहीं पड़तीं हैं। जब कभी अधिक तेल लगाने से
यह छिलके आपस में चिपक जाते हैं, तो ये बड़े बडे़ हो जाते है
और नंगी आंखों से दिखार्इ देने लगते हैं, इसे ही डेंड्रफ कहते हैं। आश्चर्यजनक तथ्य यह है
कि इसे बालों में खुश्की का पर्याय मान कर बलों में और अधिक तेल का प्रयोग किया जाता है
जो इस प्रक्रिया को बढ़ाता ही है। जब
यह लगे कि बालों में डेंड्रफ हो गया है तो बालों को अधिक से
अधिक साफ रखने का प्रयास किया जाना चाहिये। सिर की शैम्पू या साबुन लगाकर उंगलियों से हल्के-हल्के मालिश करें फिर धो डालें। सुखा कर बालों को खुला व
सूखा ही छोड़ें। दिन में तीन बार ब्रुश का प्रयोग करें या कंघी करें। कोर्इ भी अच्छा व प्रमाणिक शैम्पू प्रयोग किया जा सकता है। डेंड्रफ के लिए स्पेशल शैम्पू खरीदना पैसे की बरबादी तो है ही
पर कभी-कभी यह तथाकथित डेंड्रफ नाशक शैम्पू आपके बालों के
लिए हानिकारक भी हो सकता है। वैसे इस
प्रकार के शैम्पू में सेलीनियम सल्फाइड युक्त शैम्पू उपयुक्त माने जाते हैं।
गंजापन
सामान्यत:
प्रतिदिन सिर से कुछ बाल गिरते हैं और
उनके स्थान पर नए बाल उगते रहते हैं। पर जब बालों के गिरने की
दर बालों के उगने की
दर से काफी अधिक हो
जाती है, तो गंजापन नजर आने लगता है। पुरूष व स्त्रियों में सर पर से
बालों के गिरने का स्थान व गंजेपन का
प्रकार भिन्न-भिन्न होता है। वैसे पुरूषों में यह शिकायत महिलाओं की अपेक्षा अधिक होती है। अधिकांश मामलों में गंजेपन का कोर्इ कारण निर्धारित नहीं हो पाता है पर कभी-कभी ये वंशानुगत या किसी बीमारी के कारण भी
होता है।
सवैसे अब तक
किसी ऐसे पदार्थ की खोज नहीं हो सकी है जो या
तो गंजेपन को रोक सके या गंजे सिर पर पुन: बाल उगा सके। जहां तक
तेलों द्वारा गंजापन रोकने के
दावों का प्रश्न है वे
सारे के सारे उपभोक्ता को
छलने के प्रयास मात्र हैं। बार बार सिर मुंड़ाने से भी
इसमें कोर्इ फर्क नहीं पड़ता है। कुछ औषधियों यथा स्टीरोइड व मिनोक्सीडिल के
अहानिकारक अवांछित गुणों को गंजापन दूर करने के के प्रयोग किये गये हैं पर इसमें उपयुक्त सफलता हाथ नहीं लगी है। जैसा कि कुछ लोग मानते हैं, गंजेपन का अधिक दिमागी कार्य करने से भी कोर्इ संबन्ध नहीं है।
बालों के स्प्रे व टानिक
बाजार में कुछ ऐसे पदार्थ स्प्रे के रूप में मिलते हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि
इनसे बालों को संवारने में मदद मिलती है
या बाल संवारने के बाद बिगड़ते नहीं हैं और चिपकते भी नहीं हैं। इन
पदार्थों में कार्बनिक विलायकों का
प्रयोग किया जाता है जो
सूखने के बाद बालों को
रुखा बनाते हैं। कभी कभी यह बालों की
ऊपरी सतह को कमजोर बनाकर उनका टूटना बढ़ाते हैं। अत: इनका प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।
अब तक आपको यह तो स्पष्ट हो
ही गया होगा कि बालों में किसी टानिक या पोषक तेल को सोखने की
न तो क्षमता होती है
और न आवश्यकता अत: हेयर टानिकों, स्केल्प फूड या
पोषक तेलों की
चर्चा ही व्यर्थ है क्योंकि यह आपकी जेब हल्की करने अतिरिक्त कुछ नहीं करते। चूंकि पोषक भोजन, सिर की मालिश, स्वच्छता
एवम कंघी करना ही सुंदर,
घने, चमकीले व स्वस्थ बालों का
आधार हैं, इसलिए इन पर ही अपनी गाढ़ी कमार्इ खर्च करें, न कि खूबसूरत पैकेटों व सुगंधों में आने वाले इन प्रसाधनों पर।