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रविवार, 3 अगस्त 2014

क्या दीर्घायु हो सकेगा मानव ?

अरविन्द दुबे 
विज्ञान की प्रगति के साथ संक्रमण में कमी आई है, स्वच्छता बढ़ी है, रोगों के निदान मिले हैं फलस्वरूप मानव की औसत आयु में आशातीत वृद्धि हुई है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इन सबके सहारे मानव की औसत आयु को 80 वर्ष से ऊपर नहीं बढ़ाया जा सकता है। जैव प्रौद्योगिकी के सहारे इन सबका हल निकालने के प्रयास जारी हैं। आयु के साथ-साथ होने वाले शारीरिक परिवर्तनों को जीन के स्तर पर समझने के प्रयास जारी हैं। कोलराडो और कैलिफोर्निया  विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों नें फलों वाली मक्खी व केंचुये की प्रजाति के जीवधारियों में ऐसे जींस की पहचान कर ली है जो इन साधारण जीवधारियों का जीवनकाल बढ़ा सकते हैं। उन्होंने इन्हें एज-1 , एज-2 व डेफ-2 नाम दिया है। इन जींस के साथ प्रयोग करके वे इन साधारण जीवधारियों की आयु बढ़ाने में कामयाब भी हुए हैं। ये जींस सम्भवतया कोशिका के अंदर ऑक्सीकरण की गति को प्रभावित करते हैं। मानव में इस प्रकार के 70 जींस की पहचान कर ली गई है , अब उन पर अध्ययन जारी है
वैज्ञानिकों ने हर कोशिका के अन्दर एक जैव घड़ी की परिकल्पना की है। इसके अनुसार यह निश्चित होता है कितने विभाजन के पश्चात् कोई कोशिका अंतत: मर जाएगी। उदाहरण के लिए मानव त्वचा की कोशिकाएं करीब 50 विभाजनों के पश्चात मर जातीं हैं। कैलिफोर्निया  के जेरोन कॉरपोरेशन के वैज्ञानिकों ने टीलोमरेज नामक एंजाइम का प्रयोग करके मानव त्वचा की इन कोशिकाओं का जीवन काल 100 विभाजन से अधिक तक बढ़ाने में सफलता प्राप्त कर ली है।
हो सकता है कि हमारी आने वाली पीढ़ियों की औसत आयु 100 वर्ष से भी अधिक हो।

रविवार, 20 जुलाई 2014

गर्भावस्था में मोबाइल फोन के प्रयोग से नवजात शिशुओं में हो सकतीं हैं व्यवहारगत समस्याएं और अतिक्रियाशीलता

आभार-विकीपीडिया
मोबाइल फोन के दुष्प्रभावों पर गरमागरम बहस चल ही रही है। इसे बहरेपन से लेकर मस्तिष्क के कैंसर तक से जोड़ कर देखा जा रहा है। डेन्मार्क और केलिफोर्निया विश्वविद्यालयों के शोधकर्ताओं के दलों ने 315 बच्चों पर कि अपने अलग-अलग अध्ययनों से यह निष्कर्ष निकाला है कि जो माताएं अपने गर्भकाल के दौरान मोबाइल फोन या हैंडसेट का प्रयोग कर रहीं थीं उनके बच्चों में बैचेनी,  अतिक्रियाशीलता,  ज्यादा रोना जैसी व्यवहारगत समस्याएं समान्य माताओं के नवजात शिशुओं की अपेक्षा काफी ज्यादा संख्या में देखने को मिलतीं हैं।
ऐसा क्यों होता है?  
आभार-विकीपीडिया
एक अन्य अध्ययन में यह सिद्ध हो चुका है कि मोबाइल फोन से निकली तंरगें खाल में एक या दो सेंटीमीटर से ज्यादा गहराई तक नहीं जा पाती है इसलि इनका गर्भ में पल रहे शिशु तक तो पहुंचना संभव ही नहीं है। ऐसा माना जा रहा है कि मोबाइल फोन के इस्तेमाल से गर्भवती महिलाओं में एक नींद नियंत्रक हारमोन मेलोनोनिन पर असर पडता है। चूंकि ये हारमोन प्लेसेंटा  के जरि बच्चों में भी पहुंचता है इसलि मां पडने वाले पड़ने मोबाइल फोन के दुष्प्रभाव बच्चों में भी देखने को मिल जाते हैं।

इस लिए अगर आप गर्भवती हैं तो मोबाइल फोन का प्रयोग कम से कम ही करें और अपने नवजात शिशु को इन विकारों से बचाएं ।                                                                अरविन्द दुबे

बुधवार, 25 जून 2014

क्या आपको लत है शराब की ?

डा0 अरविन्द दुबे
आप किसी भी शराब पीने वाले से पूछ लीजिए कि क्या आपको शराब पीने की लत है? सीधा-सीधा उत्तर मिलेगा जी नहीं मैं तो सिर्फ शौकिया पीता हूँ, कभी कभी। आप कैसे जान सकते हैं की आप को शराब की लत तो नहीं?
विशेषज्ञों ने इसके लिए एक प्रश्नपत्र तैयार किया हैं जिसे केज (CAGE) प्रश्नोत्तरी कहते हैं। इसमें 4 प्रश्न होते हैं। यदि आपके लिए इनमें से किसी एक प्रश्न उत्तर हां में और बाकी का न में हो तो यह माना जाता हैं कि शराब पीना आपके लिए समस्या बनने वाला है पर अभी आपको शराब की लत नहीं लगी। अगर इनमें से दो या दो से अधिक प्रश्नों के उत्तर हां में हैं तो यह मानना चाहिये कि आपको शराब की लत लग चुकी है और आपको शारीरिक व मानसिक उपचार की आवश्यकता है।
केज (CAGE)  प्रश्नोत्तरी   
1- क्या आपको कभी लगा कि आपको अपने पीने की आदत में कमी लानी चाहिए?
2- जब कोई आपके सामने आपके शराब पीने को लेकर कोई कटाक्ष करता हैं तो क्या आप  झुंझला जाते हैं?
3- क्या अधिक पीने पर आपको ग्लानि होती है?
4- क्या सबेरे उठते ही आपको सामान्य रहने के लिए शराब लेनी पड़ती है?
हर रोज कितनी और कब से पी रहे हैं आप ?
यदि कोई पुरूष प्रतिदिन 60 ग्राम से अधिक एल्कोहल (करीब तीन पैग या ज्यादा पीता है तो 5 सालों  में उसे जिगर की सूजन (हिपेटाइटिस)  और करीब 10 सालों में सिरहोसिस हो सकती है। महिलाओं को तो सिर्फ  दो पैग रोज लेने पर ही 5 से 10 साल के भीतर  ही जिगर की इन बीमारियों खतरा बन जाता है।
क्या बीयर या अच्छी शराब नुकसान नहीं करती ?
इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप बीयर पीते हैं, शैम्पेन, रम या देशी शराब आपकी शराब में एल्कोहल की मात्रा के आधार पर हर शराब जिगर को नुकसान पहुँचाती है। इसलिये सिर्फ बीयर का सेवन करने वाले खुशफहमी न पालें । उनकी बीयर भी उनके  जिगर को उसी तरह का नुकसान पहुँचाती हैं जिस तरह कि देशी शराब।
क्या होता है शराब का शरीर में ? 
शराब पीने पर इसमें उपस्थित एल्कोहल की कुछ (बहुत थोड़ी) मात्रा मुंह, भोजन नली (ईसोफेगस), आमाशय आदि की झिल्लियॉ द्वारा सोख ली जाती है। पर अधिकांश मात्रा छोटी आंत की झिल्ली से सोख कर जिगर में ले जाई जाती है। जिगर इसे निष्क्रिय करके शरीर से बाहर निकालता है। एल्कोहल की करीब 5 प्रतिशत मात्रा गुर्दे के जरिए और करीब-करीब इतनी ही सांस के जरिए शरीर से बाहर निकल जाती है।
शराब जहर है जिगर के लिए
जो शराब आप पीते हैं उसे सुविधापूर्वक अहानिकारक पदार्थो में बदलने का जिम्मा है जिगर का, जहां से यह विभिन्न तरीकों से शरीर से बाहर निकल सके और शरीर इसके हानिकारक प्रभाव से बचा रहे। कभी-कभी जिगर को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ती हैं, खास कर तब जब आपको इस की लत लग गई हो । 

क्या सारे पीने वालों को होती है जिगर की बीमारी?
हालांकि एल्कोहल जिगर को सीधे-सीधे नुकसान पहुचाता हैं पर 10 से 20 प्रतिशत शराबियों में ही जिगर की सूजन होती देखी गई हैं उतनी ही शराब पीने के बावजूद कुछ लोगों में जिगर की सूजन होती हैं कुछ में नहीं। ऐसा क्यों होता है यह अब तक पता नहीं चल पाया है।
किस-किस को शराब से जिगर की सूजन का ज्यादा खतरा होता है ?
रोज नियम से शराब पीने वालों को            
स्त्रियों को पुरुषों के मुकाबले ज्यादा
रोज तीन चार पैग (स्त्रियों में दो पैग) करीब 10 वर्ष तक पीने वालों को
जिनके जिगर में पहले से ही हिपेटाइटिस-सी का इन्फेक्शन हो
शराब महिलाओं के लिये ज्यादा खतरनाक है
ये सर्वविदित तथ्य है। चूंकि महिलाओं में मसल (मांसपेशियाँ) कम होती हैं और वसा या फैट ज्यादा होता है। मांस में तरल पदार्थ ज्यादा होता है अत: पुरुषों में मांसपेशियाँ ज्यादा होने से शराब पीने पर शरीर में एल्कोहल की मात्रा ज्यादा तरल पदार्थ में विलीन हो जाती है फलस्वरूप रक्त में एल्कोहल का सांद्रण (मात्रा प्रति मिलीलीटर) कम रहती है। इसके विपरीत महिलाओं में मांसपेशियाँ हल्की होने के कारण एल्कोहल की समान मात्रा कम तरल पदार्थ में विलीन होती है फलस्वरूप एल्कोहल की समान मात्रा लेने पर भी उनके रक्त में एल्कोहल का सांद्रण साद्रण पुरुषों की अपेक्षा अधिक हो जाता है और इससे उन में होने वाले खतरे भी ज्यादा हो जाते हैं।
तरह तरह का पीना
एल्कोहलिक पेय के लेबिल पर लिखे एल्कोहल के प्रतिशत के हिसाब से गुणा-भाग करके ये पता करें कि आप प्रतिदिन एल्कोहल की कितनी मात्रा ले रहे हैं फिर निम्न सारिणी से मिलान करें कि क्या यह आपके लिये सुरक्षित है?        
            
कैसा पीना?
पुरुषों के लिए अल्कोहल की मात्रा/दिन
स्त्रियों के लिए अल्कोहल की मात्रा/दिन
सुरक्षित पीना
40 ग्राम से कम
20 ग्राम से कम
नुकसानदेह पीना
40से 60 ग्राम तक
20से 40 ग्राम तक
खतरनाक पीना
60 ग्राम से अधिक
40 ग्राम से अधिक

पीने के बावजूद भी रोक सकते हैं जिगर को बीमार होनेसे  अगर....
पुरुष एक दिन में 4( सप्ताह भर में 21 से अधिक) और महिलाएं एक दिन में तीन 
   (सप्ताह भर में 14 से अधिक  से अधिक ) पैग न पिए॥
गर्भवती महिलाएं तो बिलकुल ही न पिएं।
पीने को रोजाना की आदत न बनाएं।
एक बार में ज्यादा न पिएं।
उपचार

इसका एक मात्र प्रभावी उपचार हैं शराब से हमेशा -हमेशा को अलविदा कहना। लेकिन इतनी लम्बी अवधि से जो व्यक्ति शराब पी रहा होता है उसके द्वारा शराब का सेवन बंद करते ही उनको तरह-तरह  की शरीरिक परेशानियां होने लगती हैं जिनमें से कुछ जानलेवा भी हो सकती  हैं।  इस स्थिति को एल्कोहल विद्ड्राल सिंड्रोम कहते हैं अत: शराब छुडाने के लिये किसी योग्य मनोचिकित्सक या नशा उन्मूलन केंद्र की मदद जरूर लेनी चाहिए। इसमें रोगी को अस्पताल में भरती होने की जरूरत भी पड़ सकती है। 

क्या आपका भोजन सही है : स्वयं परखें

डा0 अरविन्द दुबे

इसके लिये एक प्रश्न सारिणी नीचे दी जा रही है हर एक का उत्तर हां या न में दें। वे प्रश्न जिनके उत्तर हां में हों उन पर सही का निशान लगाएं।

क्या आप अपने भोजन में सामान्यतया हर रोज या हफ़्ते एस चार य उससे अधिक बार लेते हैं ?

  • फास्ट फूड
  • डिब्बा बंद सब्ज़ियाँ व सूप
  • काफी भुना-तला मांस या सब्ज़ियाँ
  • डेजर्ट, बिस्कुट, पाई, आइसक्रीम और नूडल्स
  • चोकर निकले आटे की रोटी और काफी छीलकर बिल्कुल सफेद किये हुए चावल।
  • पाउच में बिकने वाले कुरकुरे पदार्थ (पोटेटो वेफर्स, भुजिया, पापड़ आदि)
  • केचअप, जेम, सीरप्स, सॉस आदि
  • तेज चाय या गाढ़ी काफी के दिन में 2 से अधिक कप
  • सप्ताह में 5 दिन से अधिक अल्कोहल युक्त पेय (प्रति बार एक पैग से अधिक)
क्या आप ?

  • दिन में एक या सारे खाने गोल कर जाते हैं ?
  • दिन में ठीक से खाने की जगह उल्टा-सीधा खाकर काम चला लेते हैं ?
  • प्रतिदिन एक हजार से कम कैलोरी का भोजन लेते हैं ?
  • धूम्रपान करते हैं ?
  • अक्सर कुछ न कुछ दवाइयाँ खाते रहते हैं ?
  • नियमित व्यायाम नहीं करते और अधिकतर समय आराम से बैठे रहते हैं ?
  • बहुत सारी छोटी छोटी तकलीफों से पीड़ित हैं, यथा गैस, कमजोरी, थकान, सिरदर्द, नीद न आना, चक्कर आना व शरीर के अन्य दर्द? 
      
            अब देखें, अगर आपने पांच से कम प्रश्नों पर सही का निशान लगाया है तो आप स्वस्थ भोजन ले रहे हैं। अगर आपने करीब-करीब आधे प्रश्नों पर सही के निशान लगाए हैं तो आपको अपने भोजन, रहन-सहन और खान-पान में कुछ परिवर्तनों की आवश्यकता है। अगर आपने करीब-करीब सारे वाक्यों पर सही के निशान लगाए हैं तो फिक्र करिए। आपके भोजन व दिनचर्या में आमूल परिवर्तन की आवश्यकता है इसलिये तुरन्त अपने डाक्टर से मिलिए।

अपने सोचने का तरीका बदलिए

भोजन व खाने के बारे में हमारे समाज में कुछ ऐसे विश्वास प्रचलित हैं जो न केवल निरर्थक है अपितु कभी-कभी हानिकारक या क्लेश कारक भी हो जाते हैं इनमें से कुछ हैं-

  • आपने अपनी प्लेट में जितना भोजन निकाला है वह सारे का सारा आपको खाना ही है चाहे आपका पेट भर गया हो या खाने की इच्छा न हो क्योंकि खाना व्यर्थ करना एक अपराध है।
  • मैं बहुत तेज खाता हूं। इससे लोगों के साथ खाने पर, मेरे खाना खत्म करने के तक, लोगों को इंतजार नहीं करना पड़ता है यह अच्छी बात है।
  • अरे खाने से पेट ही तो भरना है, थोड़ा अच्छा-खराब है तो क्या? अगर मुझे वजनकम करना है तो मुझे खाने के स्वाद से मतलब नहीं रखना चाहिए।
  • वह एक रोटी और लेने का आग्रह कर रही थी कैसा मना किया जाता?
  • मेरा वजन कभी कम हो ही नहीं सकता लगता है मेरी बनावट ही ऐसी है।
  • अभी जो कुछ खाना है खा लूं फिर एक दो महीने जमकर डायटिंग कर ली जायेगी तो सब ठीक हो जाएगा।
अगर आप ऐसा सोचते हैं तो अपने सोचने का तरीका बदलिए। थोड़े समय की डायटिंग के स्थान पर भोजन में लम्बे समय तक चल सकने वाले परिवर्तन को अपनाएं।


मंगलवार, 10 जून 2014

करिये फिक्र अपने बालों की

                                                        अरविन्द दुबे

बालों की सफाई
भारत की अधिकांश महिलाएँ, विशेष कर मध्यमवर्ग की महिलाएँ व ग्रामीण महिलाओं में यह धारणा होती है कि बालों को प्रतिदिन नहीं धोना चाहिए क्योंकि इससे बालों को हानि पहुंचती है, अधिक धोने से बालों का प्राकृतिक तेल धुल जाता है, जिससे उनकी चमक जाती रहती है, उनकी नोकें फट जाती हैं, वे अधिक टूटते हैं और जल्दी ही सफेद हो जाते हैं।
यदि प्रयोग किये जाने वाले साबुन में छार या कास्टिक की मात्रा अधिक है तो ये कुछ हद तक बालों के प्राकृतिक तेल को धो सकते हैं। पर इनका असर कभी भी तेल पैदा करने वाली ग्रंथियों तक नहीं पहुंच पाता है क्योंकि ये खाल में काफी गहराई पर स्थित होतीं हैं, जहां तक साबुन आदि नहीं पहुंच पाते हैं। यदि बालों की ये तेल पैदा करने वाली ग्रंथियां स्वस्थ हैं तो चाहे उन्हें कितना भी धोया जाए उन पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है। हां यदि बाल प्राकृतिक रूप से काफी सूखे हैं तो सस्ते साबुन के प्रयोग से वे अधिक टूट सकते हैं ।
अधिकतर ग्रामीण महिलाएँ बाल धोने के लिए सस्ते, अधिक कास्टिक वाले साबुनों का प्रयोग करती हैं। वस्तुत: इन्ही साबुनों के साबुनों के प्रयोग से ही बाल अपनी स्वाभाविक चमक छोड़कर कर कड़े होने लगते हैं और अपेक्षाकृत अधिक टूटते हैं। नहाने का कोई अच्छा साबुन बाल धोने के लिये भी प्रयोग किया जा सकता है।
कुछ महिलाओं की शिकायत होती है कि नहाने के अच्छे साबुनों का प्रयोग करने से उनके बाल उलझते अधिक हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बालों से साबुन अच्छी तरह निकल नहीं पाता। अत: साबुन लगाने के बाद बालों को कई बार पानी में धोएं। अधिकतर अधिक महीन बालों में ही यह समस्या देखने को मिलती है।
शैम्पू
एक शैम्पू में काम की दो चीजें होती हैं एक डिटरजेंट जो गन्दगी को घोल लेता है व दूसरा सरफेक्टेंट जो डिटरजेंट को सिर के हर छोटे बड़े हिस्से में फैलने मे मदद करता है। इसके अतिरिक्त कुछ विशेष पदार्थ शैम्पू के अन्दर मिलाए जाते हैं यथा- गंधक, सेलीसिलिक एसिड, जीवाणु नाशक पदार्थ, सेलीनियम सल्फाइड, जस्ते के यौगिक व तारकोल से निकाले गये औषधि यौगिक आदि। कभी-कभी निर्माता इसमें कोई ऐसा पदार्थ मिला देते हैं जिसका कि बालों की सफाई व स्वास्थ्य से दूर-दूर तक का भी संबंध नहीं होता है जैसे नीबू, चूना, हल्दी, अंडे, हरे फल, सुगंधियां आदि।
मेरी जानकारी में तो कोई ऐसी विधि नहीं है जिसके द्वारा यह तथाकथित पोषक पदार्थ बालों द्वारा सोखे जा सकें क्योंकि बालों की बाहरी परत का काम ही यह होता है कि बाहरी पदार्थों को अन्दर जाने से रोके। पोषक तत्व सिर्फ बालों की जड़ द्वारा ही गृहण किए जा सकते हैं, जहां तक यह तथाकथित पोषक तत्व पहुंच नहीं सकते। अत: इसके लिए कुछ किया जा सकता हो तो वह पोषक तत्वों के खाने से होगा न कि उनको सिर पर मलकर धो देने से।
इनके स्थान पर घर में बनी सस्ती चीजें प्रयोग की जा सकती हैं, यथा- सिरका, रीठा, शिकाकाई आदि पानी में डालकर प्रयोग किए जा सकते हैं। इनमें कुछ कार्बनिक अम्ल होते हैं। यह अम्ल गन्दगी व छार को घोल लेते हैं और पानी के साथ धुल कर बाहर निकल जाते हैं। बालों में मुल्तानी मिटटी या दही में बेसन घोल कर भी लगाया जा सकता है।
शैम्पू या साबुन बालों से पूरी तरह निकल जाने की पहचान यह है कि पूरी तरह धुले बालों पर अगर हाथ फिराया जाये तो वे चिकने नहीं वरन थोड़े चिपकने से लगते हैं। जब तक ये स्थिति न आ जाये बालों को साफ पानी से धोते रहें। बाल धोने के लिये पहले उन्हें गुनगुने पानी से धोना शुरू करें व अन्तिम धुलाई सामान्य तापक्रम के पानी से करें।
तेल का प्रयोग
बालों के पोषण और वृद्धि के लिए किसी तेल की आवश्यकता नहीं होती, यह निर्विवाद सत्य है। बाहर से लगाया गया तेल बाल में प्रवेश नहीं कर पाता अत: यह बालों के लिए बेकार ही रहता है। जितने तेल की आवश्यकता बालों को होती है उतना तेल उत्पन्न करने की क्षमता बाल से सम्बद्ध तेल ग्रंथियों में होती है। 
कंघी करना
बालों में दिन में कम से कम दो बार कंघी अवश्य करनी चाहिए। इससे बालों में फंसी गंदगी निकल जाती है और तथा कथित डेंड्रफ नहीं होने पाती। बालों में कंघी करने से सिर की खाल में रक्त का प्रवाह बढ़ता है जिससे बाल स्वस्थ रहते हैं।
बालों की छंटाई व उनकी वृद्धि
आम धारणा यह है कि बालों को छांटते रहने से वे तेजी से बढ़ते हैं। पर ऐसा है नहीं, क्योंकि हम काटते तो बाल का निर्जीव भाग हैं और बाल बढ़ता उस भाग से है जो कि खाल के अन्दर दबा रहता है।  लोगों का यह विचार, कि सिर मुण्डाने से घने बाल उगते हैं, भी निराधार है।
बालों की रंगाई
बाल रंगने वाले इन पदार्थो में एनिलीन व कुछ धात्विक रंगों का प्रयोग किया जाता है जो एलर्जी द्वारा सिर की चमड़ी आंखों व चेहरे को नुकसान पहुंचा सकते हैं। ब्लीचिंग के लिये प्रयुक्त प्रसाधनों में हाइड्रोजन परआक्साइड, सोडियम परबोरेट व अमोनिया का प्रयोग किया जाता है जो कि बार-बार प्रयोग करने से बालों को हानि ही पहुंचाते हैं। डाई व ब्लीच दोनों के बार-बार प्रयोग से बाल सूखे हो जाते हैं और ज्यादा टूटते हैं। इसलिए  बाल रंगने के लिए  प्राकृतिक चीजें यथा मेंहदी प्रयोग करें।
रुसी या डेंड्र

सिर की चमड़ी शरीर की अन्य जगह की खाल की तरह हमेशा नीचे से नई कोशिकाएं पैदा करती है। बदले में उसके ऊपर की कोशिकाएं, जो अब तक निर्जीव हो चुकी होती हैं, सतह से अलग हो होकर झड़ती रहती हैं। ये कोशिकाएं छोटे पतले छिलकों के रूप में खाल से अलग होती रहती हैं। कभी-कभी अधिक तेल लगाने से ये छिलके आपस में चिपक जाते हैं, तो बड़े बड़े हो जाते है और नंगी आँखों से दिखाई देने लगते हैं, इसे ही  डेंड्रकहते हैं। ऐसे में बालों को अधिक से अधिक साफ रखने का प्रयास किया जाना चाहि। कोई भी अच्छा शैम्पू प्रयोग किया जा सकता है। डेंड्रके लिये स्पेशल शैम्पू खरीदना मात्र पैसे की बरबादी है 
संदर्भ- wikimedia.org
         -http://www.ehow.com/fashion/hair-care/
        -http://www.beautythroughstrength.com/

सोमवार, 9 जून 2014

आपकी त्वचा और उसकी देखभाल

अरविन्द दुबे

            Courtsey-http://www.wikihow.com
शायद मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जिसमें इस त्वचा का महत्व जीवित प्राणी में सर्वाधिक है, नहीं तो सारे प्राणियों में त्वचा का महत्व प्राणी की मृत्यु के बाद होता है। त्वचा मात्र का आवरण ही नहीं अपितु एक ढ़ाल भी है, शरीर का अति संवेदनशील एन्टेना भी है। त्वचा का चिकनापन, सौम्यता, मुलायम होना, किसी के व्यक्तित्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि व्यक्तित्व का जो भी भाग दिखाई देता है वह किन्हीं न किन्हीं अर्थों में त्वचा ही है। यह त्वचा ही है जो जवान होती है और बूढ़ी हो जाती है।

आपकी त्वचा
  • त्वचा मुख्यत: दो परतों की बनी होती है, बाहयचर्म या इपीडर्मिस एवं अधोचर्म या डर्मिस। बाहयचर्म कठोर एवं शुष्क होती है जबकि अधोचर्म मुलायम होती है।
  • हथेलियों व तलवों को अगर ध्यान से देखा जाये तो बड़ी व स्पष्ट रेखाओं के अतिरिक्त बहुत महीन-महीन सी रेखायें भी दिखाई पड़ती हैं। वस्तुत: ये रेखायें अधोचर्म में पायी जाने वाली सूक्ष्म रचनओं की क्रमबद्ध पक्तियां हैं। इन सूक्ष्म संरचनाओं में तन्त्रिकाओं के पतले सिरे एवं रक्तवाहिकायें होती हैं। इन रक्तवाहिकाओं में रक्त संचार नन्हीं तन्त्रिका सिरों से नियन्त्रित होता है, इसी कारण तापक्रम के साथ त्वचा का रंग भी बदलता है, जैसे सदिZयों मे उगलियों के सिरे नीले हो जाते हैं व गर्मी की धूप में या आग सेकने पर मुंह व हथेलियां लाल हो जाती है।
  • इन संरचनाओं के अतिरिक्त त्वचा में कई प्रकार की ग्रन्थियॉ पायी जाती हैं जिनसे नाना प्रकार के द्रव निकलते हैं। जननांगों की त्वचा से कुछ विशेष प्रकार के द्रव निकलते हैं जो पसीने के साथ मिलकर एक अलग गंध पैदा करते हैं इन्हें फेरोमोन्स कहते हैं। जानवरों में तो ये नर व मादा को एक दूसरों की ओर आकर्षित करने में सहायक होते हैं।
  • खाल में पायी जाने वाली इन ग्रन्थियॉ मे प्रमुख हैं पसीना एवं तेल उत्पन्न करने वाली ग्रन्थियॉ। पसीना जहां त्वचा के ताप का नियमन करता है तेल वहीं त्वचा को मुलायम एवं चिकना बनाता है और इसे चटखने व फटने से बचाता है।
       courtesy-wikipedia
गुलाबी चेहरा : अच्छे स्वास्थय का प्रतीक

एक मान्यता यह है कि गुलाबी दमकता चेहरा स्वस्थ होने की निशानी है। यदि किसी व्यक्ति के चेहरे अगर लालिमा नहीं है तो इसका ये अर्थ कदापि नहीं है कि वह व्यक्ति स्वस्थ नहीं है। वस्तुत: चेहरे का ये गुलाबीपन त्वचा की ऊपरी पर्तों के पतलेपन पर निर्भर करता है, जिसके नीचे से वाहिकायें चमकती हैं। त्चचा की ये ऊपरी पर्त जितनी पतली होगीए त्वचा उतनी ही गुलाबी दिखेगी।

त्वचा की सफाई

गोरा और काला होना तो कुदरत की देन है, कुछ अर्थों में ये सही भी है पर निरन्तर सफाई रखने की आदत से भी त्वचा की रंगत मे परोक्ष रूप से कुछ फर्क लाया जा सकता है। *
त्वचा की मालिश
मालिश से त्वचा में ताजगी व कोमलता बरक़रार रहती है इसलिये 30 से 35 वर्ष की आयु के बाद मालिश की बहुत उपयोगिता है। चेहरे की मालिश करते समय ध्यान ये रखना चाहिये कि मालिश करते समय उँगलियॉ नीचे से ऊपर की ओर चलायी जायें इससे चेहरे पर पड़ने वाली झुर्रियों से बचा जा सकता है। बांहों व शरीर के अन्य हिस्सों की मालिश से उन स्थानों की त्वचा ढीली होने से बचाई जा सकती है और काफी अर्थों में युवावस्था बनाये रखी जा सकती है।

सौन्दर्य प्रसाधन और आपकी त्वचा
  • जनसामान्य के अनुसार ये सौन्दर्य प्रसाधन खूबसूरती को बनाये रखने या बदसूरती को छिपाने रखने के अचूक नुस्खे हैं।
  • ये सच है कि अगर उच्च कोटि के सौन्दर्य प्रसाधन उपयोग किये जायें तो ये त्वचा पर बहुत बुरा असर नहीं डालते पर त्वचा को ये कोई लाभ भी नहीं पहुँचाते पर ये अच्छे किस्म के सौन्दर्य प्रसाधन इतने मंहगे होते है कि उन्हें खरीद पाना मध्यम आय वर्ग के लिये सम्भव नहीं होता। ये लोग अपनी सुन्दरता बढ़ाने के झूठे मोह में जो सौन्दर्य प्रसाधन खरीद पाते हैं उनमें अधिकांश में मिले अवयव त्वचा पर बहुत बुरा असर डालते हैं और इनके निरन्तर उपयोग से त्वचा की प्राकृतिक सौम्यता जाती रहती है।
  • बहुत सारे सौन्दर्य प्रसाधनों (सन स्क्रीन्स वाले) की विशेषता ये होती है कि वे सूर्य की किरणों को त्वचा तक पहुंचने से रोकते हैं फलत: त्वचा को पोषण व विटामिन नही मिल पाता है और त्वचा खुरदरी हो जाती है।
  • स्वस्थ, लम्बे और चमकदार बालों, मोती से चमकते दांतों, चमकीली आंखों व स्वस्थ प्राकृतिक देहयष्टि का स्थान कोई सौन्दर्य प्रसाधन नही ले सकता है।
धूप और आपकी त्वचा

सूर्य का प्रकाश वैसे तो त्वचा के पोषण के लिये बहुत आवश्यक है पर इससे त्वचा का रंग धीरे धीरे गहराने लगता है।
जो लोग धूप में अधिक काम करते हैं, वे लोग विशेषकर गर्मियों मे सनस्क्रीन वाली क्रीम का उपयोग कर सकते हैं। पर हर मौसम में व उजले रंग की चाह में इन तथा गोरा बनाने वाली क्रीम का अधिक प्रयोग नुकसान पहुचा सकता है क्योंकि ये सनस्क्रीन सूर्य की पराबैगनी किरणों को चेहरे की त्वचा तक नहीं पहुचने देंगे और त्वचा में उपयोगी विटामिन का संश्लेषण नहीं हो पायेगा। आप स्वयं ही फैसला कर लें आप को गोरी त्वचा चाहिये या स्वस्थ त्वचा?

उचित व्यायाम, आहार और विश्राम


त्वचा के सन्दर्भ मे नियमित व्यायाम , पोषक आहार व आवश्यक विश्राम को सौन्दर्य प्रसाधनों की श्रेष्ठता की पराकाष्ठा माना जा सकता है। जल्दी सोने व सबेरे जल्दी जागने की आदत त्वचा का चिकनापन और सौम्यता बनाये रखने में बहुत सहायक होती है। दिन में कम से कम आठ घंटे का विश्राम, आंखों के चारों ओर झाईयां और झुर्रियां नहीं पड़ने देगा। उचित भोजन का अर्थ है प्रोटीन युक्त भोजन यथा दालें, अण्डा या मांस आदि। विटामिन्स, विशेषकर बी कम्पलेक्स समुदाय के विटामिन, जो पत्तेदार सब्जियों दूध ताजे फलों में मिलते है, का नियमित सेवन त्वचा को स्वस्थ रखने के लिये नितान्त आवश्यक है। जहां तक व्यायाम की बात है नियमित पर चाहे थोड़ा सा सही , व्यायाम जरूर करना चाहिये। व्यायाम से त्वचा में रक्त प्रवाह सुचारू रूप से होता रहता है जो त्वचा में ताजगी व चिकनापन बनाये रखता है।
संदर्भ-http://skin-care.health-cares.net/                                                                                   http://www.wikihow.com/Take-Care-of-Your-Skin

रविवार, 8 जून 2014

आम और खास की आम बीमारी-सिरदर्द

                                                                                                      अरविन्द दुबे

कभी न कभी हर मानव को अपने चंगुल में लेने वाला ये मनहूस सा नाम अपने आप में कोई बीमारी नहीं है, बल्कि किसी बीमारी का एक लक्षण भर है।

क्यों होता है ये सिर दर्द?

 • आधाशीशी, आधेसिर का दर्द या माइग्रेन सिर की रक्त वाहिकाओं के असमान्य संकुचन व शिथिलन से उत्पन्न होता है। ये सिर के आधे भाग को (दायें या बायें), प्रभावित करता है।
मानसिक तनाव के कारण उत्पन्न सिरदर्द तीव्रता में हल्का और उबाऊ होता है। लगता है कि किसी ने सिर के चारों ओर पट्टी बांध रखी हो।
मासिक आने के पूर्व भी कुछ महिलायें सिर दर्द से प्रभावित होती हैं। ये मासिक होने से पूर्व होने वाले लक्षण व पानी के शरीर में संग्रह के कारण होता है।
अक्सर शराब की कुछ मात्रा पीने से कुछ व्यक्तियों में सिरदर्द हो जाता है। अधिकांशतः ये नीन्द के बीच में प्रारम्भ होता है और इसके कारण नीन्द खूल जाती है।
अधिक काफी पीने से, तेज बुखार में, पहाडों या ऊँचे स्थान पर जाने से या बन्द कमरे में जलती कोयले की अंगीठी रखकर सोने से भी सिरदर्द होता है। ये दर्द मिष्तष्क को मिलने वाली आक्सीजन की कमी से होता है।
मष्तिष्क को रक्त पहुचाने वाली रक्तवाहिकायें कभी कभी रक्त के थक्के (क्लॉट) या बुलबुले (इम्बोलस) के कारण बन्द हो जाती हैं। इससे होने वाला सिरदर्द कभी कभी जानलेवा भी हो सकता है।
इस श्रेणी के सिरदर्द के मुख्य कारण हैं मैनिन्जाइटिस या गर्दन तोड़ बुखार, इन्सेफेलाइटिस, दिमाग की टी0 बी0 और दिमाग की रसौली आदि बीमारियां खतरनाक प्रकार का सिरदर्द पैदा करती हैं। गर्दन अकड़ जाती है साथ में उल्टी, झटके आना या शरीर अकड़ने की तकलीफ भी होती है।
नाक व चेहरे की अन्दर से खोखली हडिडयों के खोखले स्थानों पर चढ़ी झिल्ली में सूजन आने पर भी सिरदर्द की शिकायत होती है। इसे साइनोसाइटिस कहते हैं।
आंखों के कारण होने वाले सिरदर्द के मुख्य कारण होते हैं, नज़र की कमजोरी व भेंगापन। अक्सर ये दर्द सिर में भारीपन की तरह मालूम होता है। आंख के अन्दर एक स्वच्छ पानी जैसा पदार्थ भरा रहता है। कभी-कभी इस पदार्थ के बनने व आंख द्वारा सोखे जाने का सामंजस्य गड़बड़ा जाता है। इसके कारण जो सिरदर्द होता है उसे सबलबाई (ग्लोकोमा) कहते हैं।
 • दांत या मसूड़ों की बीमारियां भी सिरदर्द का कारण बनतीं हैं।
 • घबराहट व डिप्रेशन के रोग भी सिर दर्द की तरह प्रकट होते हैं।
 • इन सबके अतिरिक्त निमोनियां, पोलिओ, मियादी बुखार, मलेरिया, आदि में भी सिरदर्द की परेशानी हो सकती है।
कभी-कभी अधिक काफी पीने से या आइसक्रीम खाने से या चाइनीज खाना खाने से भी सिरदर्द हो सकता है।
शारीरिक सम्बंध के समय भी तीव्र सिर दर्द का वर्णन भी पुस्तको में मिलता है।

 सिरदर्द : उपचार

सिरदर्द के लिये जनसाधारण द्वारा भिन्न भिन्न प्रकार के तेल, कपूर और बाम आदि प्रयोग किये जाते हैं। वैसे इनकी उपयोगिता तो सन्देहास्पद है पर अक्सर कुछ तनाव सम्बन्धित सिर दर्दों में इससे लाभ भी होता है। 
जो औषधियां सिर दर्द के निवारण हेतु प्रयोग की जाती है वे दो प्रकार की होती हैं एक तो वे जिनके प्रयोग से उनकी आदत नहीं पड़ती। इन्हें नान-नारकोटिक एनालजेसिक कहते हैं। जितनी सिरदर्द नाशक दवायें जनसाधारण को सफलता से उपलब्ध है या विज्ञापनबाजी के प्रभाव में प्रयोग की जाती हैं, इसी वर्ग में आती हैं। इन सब दवाओं में एस्पिरिन अकेले या किसी अन्य दवा के साथ संयुक्त रूप में में विद्यमान होती हैं। ये औषधियां अपेक्षाकृत कम हानिकारक होतीं है पर खाली पेट लेने पर कभी कभी पेट में जलन, उल्टी या खून की उल्टी तक हो सकती है। अत: कभी एक बार में दो गोली से अधिक न लें व खाली पेट न ये दवायें न खायें। यदि कभी पेट में जलन, उल्टी या खून की उल्टी  होने लगे तो तुरन्त चिकित्सक से परामर्श लें। यदि पेट में जलन आदि हो तो दवा खाने के आधे घंटे बाद तेजाब नाशक दवा यथा डाइजीन के दो तीन बड़े चम्मच लें।
सिरदर्द की अन्य दवायें यथा पैरासिटामोल, एनालजिन व आइबुप्रोफेन आदि सुरक्षित दवायें है पर ये भी अधिक समय तक (लगातार 7 दिन से अधिक) लेने से गुर्दे व खून की खतरनाक बीमारियां पैदा कर सकतीं हैं। इनका प्रयोग किसी भी हालत में बिना चिकित्सक की राय के नहीं करना चाहिये।
योग साधना व एक्यूपंचर को मानने वाले इन विधि से सब प्रकार के सिर के दर्दों के पूर्ण उपचार का दावा करते हैं। पर वे सिर दर्द जिनका कारण कोई बीमारी हो, उसमें इन विधियों द्वारा उपचार की आशा करनी व्यर्थ है। तनावजन्य सिरदर्द में इसका कुछ महत्व हो सकता है पर यह भी पूर्णतया प्रमाणित नहीं है।
जहां मस्तिष्क में रक्त के बहाव में रूकावट के कारण या मस्तिष्क की रसौली के कारण सिरदर्द हो वहॉ सिरदर्द के लिये शल्य क्रिया की आवश्यकता पड़ जाती है।

खतरनाक सिरदर्द

वे सिरदर्द जो बार बार होते हों, इतने तेज हों कि ऐसा लगे कि सिर फट जायेगा, जिनके साथ उल्टी हो, चक्कर आये, नज़र धुंघली पड़ जाये, गर्दन अकड़ जाये, गर्दन मोड़ने या झुकाने में दर्द हो, जिसके साथ में तेज बुखार हो, शरीर में अकड़न हो, झटके आयें या बेहोशी आ जाये, ऐसे सारे सिर दर्द खतरनाक किस्म के सिरदर्द कहे जाते हैं। इनमें स्वंय कोई दवा न लेकर शीघ्रतशीध्र डाक्टर से सम्पर्क करना चाहिए।