मोबाइल फोन के दुष्प्रभावों पर गरमागरम बहस चल ही रही है। इसे बहरेपन से लेकर मस्तिष्क के कैंसर तक से जोड़ कर देखा जा रहा है। डेन्मार्क और केलिफोर्निया
विश्वविद्यालयों के शोधकर्ताओं के दलों ने 315 बच्चों पर किए गए अपने अलग-अलग
अध्ययनों से यह निष्कर्ष निकाला है
कि जो माताएं अपने गर्भकाल के
दौरान मोबाइल फोन या हैंडसेट का प्रयोग कर
रहीं थीं उनके बच्चों में बैचेनी, अतिक्रियाशीलता, ज्यादा रोना जैसी व्यवहारगत समस्याएं समान्य माताओं के नवजात शिशुओं की अपेक्षा काफी ज्यादा संख्या में देखने को
मिलतीं हैं।
ऐसा क्यों होता है?
एक अन्य अध्ययन में यह सिद्ध हो चुका है कि मोबाइल फोन से निकली तंरगें खाल में एक या दो सेंटीमीटर से ज्यादा गहराई तक नहीं जा पाती है इसलिए इनका गर्भ में पल रहे शिशु तक तो पहुंचना संभव ही नहीं है। ऐसा माना जा रहा है कि मोबाइल फोन के
इस्तेमाल से गर्भवती महिलाओं में एक नींद नियंत्रक हारमोन मेलोनोनिन
पर असर पडता है। चूंकि ये हारमोन प्लेसेंटा के जरिए बच्चों में भी
पहुंचता है इसलिए मां पडने वाले पड़ने
मोबाइल फोन के दुष्प्रभाव बच्चों में भी देखने को मिल जाते
हैं।
इस लिए अगर आप गर्भवती हैं तो मोबाइल फोन का प्रयोग कम से
कम ही करें और अपने नवजात शिशु को इन विकारों से बचाएं । - अरविन्द दुबे